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Tuesday 24 November 2020
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मूवी रिव्यू : कॉमेडी के साथ अहम् सन्देश देने में क़ामयाब चल जा बापू

मूवी रिव्यू : कॉमेडी के साथ अहम् सन्देश देने में क़ामयाब चल जा बापू

अवधि : १२२ मिनट

सेंसर : U / A

बैनर : सेवेंसीज प्रोडक्शंस ,

निदेशक : देदीप्य जोशी ,

निर्माता : वरुण गौर

रेटिंग :  [star rating=”3.” numeric=”yes”]

देश में धर्म , आध्यात्म के नाम पर ढोंगी बाबा के पीछे के चहेरे को बेनकाब करती फ़िल्म “चल जा बापू ” मनोंरजन के साथ आस्था के अंधी पट्टी को हटाने के अहम् सन्देश को मनोरंजक तरीक़े से देने में क़ामयाब रहती है।

फिल्म सहारनपुर के आषुतोष यानी की आशु की कहानी है जो बिंदास है उसे काम करना पसंद नहीं बस जुगाड़ से से सारा काम करना चाहता है आशुतोष बिजनेस मैनेजमेंट में प्रथम श्रेणी से पास है लेकिन उसे व्यवसाय के बारे में कोई जानकारी है क्योंकि मार्क शीट्स और कॉलेज की डिग्री नकली है जिसे आशु प्रिंट करके बनायीं है । मूल दस्तावेजों की तुलना में ये दस्तावेज उनके लिए अधिक महत्वपूर्ण थे क्योंकि उन्हें कभी भी अपनी इच्छित डिग्री प्राप्त करने के लिए कड़ी मेहनत या बर्बाद नहीं करना पड़ता था, वह हर बार एक नई डिग्री प्रिंट कर सकता था। अपनी प्रेमिका पल्लवी ( हृषिता भट्ट ) के घरवालों को नकली डिग्री दिखाकर वह शादी करने में तो कामयाब हो जाता है लेकिन अब आशु पांच वर्षीय पिता का पिता है और बेरोजगार भी है झूठ और निठ्ठलेपन से तंग आकर एकदिन आशुतोष की पत्नी ने उसे अतिम 1000 रुपये का नोट दिया, और उसे बताया, “आप हमेशा अपना खुद का व्यवसाय शुरू करना चाहते थे, यहां आप जाओ, अपना खुद का व्यवसाय शुरू करें, मैं आपको छोड़ रहा हूं और अब आपको केवल घर चलाने की ज़रूरत है “।

आशु एक बाबा के विज्ञापन को देखता है और सफल व्यवसाय करने के इरादे से उसके पास जाता है। आशु बाबा 1000 रुपये का नोट देता है, बाबा आशु को आशीर्वाद देता है और 500 रुपये का नोट देता है। आशु बाबा के 500 के नॉट को आर्शीवाद समझकर कुछ करने की सोचता है लेकिन कहानी में ट्विस्ट तब आता है जब अशुयश को पता चलता हैकि 500 की नॉट तो नकली है बाजार में कोई भी नोट स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है। थककर आशु नकली नोट वापस करने के लिए बाबा के पास जाता है, लेकिन बाबा ने आशु को धमकी दी कर वापस भेज देता है

आशु को ऐसा कोई रास्ता नहीं मिला जिसमें वह नोट का उपयोग कर सके, इसलिए वह अपनी बहन को रक्षाबंधन के लिए 500 रुपये का नोट देता है। आशु बहुत बुद्धिमानी से अपनी बहन को नोट का उपयोग कभी नहीं करने के लिए कहता है क्योंकि यह पहला उपहार है जिसे उसने कभी दिया है। एक दिन, उसकी बहन और पत्नी खरीदारी के लिए एक मॉल में जाती है और उस नकली 500 रुपये के नोट का उपयोग करके भुगतान करती है। मॉल के प्रबंधक ने पुलिस शिकायत दर्ज की, क्योंकि अफवाह थी कि दो महिलाएं बाजार में फर्जी नोट्स का इस्तेमाल कर रही हैं, इसलिए पुलिस आशु की बहन और पत्नी को पुलिस स्टेशन ले जाती है। आशु दोषी महसूस कर रहा है और इसलिए नकली 500 रुपये के नोट के बारे में पूरी सच्चाई के साथ साफ आना तय करता है। आशु को बाबा मूलमंत्र के काले व्यापार को ख़त्म करना है और दुनिया को ठगने के वाले बाबा को भी वह ठगकर ही सबक सिखाना चाहता है और साथ ही उसे अपनी पत्नी पल्लवी का भरोसा भी जितना है क्या आशु दुनिया को ठगनेवाले बाबा मूलमंत्र को ठगने में कामयाब रहता है उसके लिए आपने फ़िल्म देखनी पड़ेगी

निर्देशक दैदीप्य जोशी ने अपनी पहली फिल्म साँकल से देश विदेश के कई फिल्म महोत्सव में प्रभावित किया था उसके मुकाबले चल जा बापू उतना फ़िल्म का विषय विशुद्ध व्यवसायिक होना है फ़िल्म के कई दृश्य अच्छे बन पड़े है जिसमें आशु के पिता ( राजू खेर ) और हृषिता भट्ट की माँ हिमानी शिवपुरी के बीच के सम्वाद , बाबा मूलमंत्र द्वारा जाली नोटों की डील के संवाद चहेरे पर मुस्कान लाने में कामयाब रहते है

अभिनय की दृष्टि से आशुतोष कौशक का अभिनय बहुत ही स्वाभाविक है। किरदार का नाम भी आशु है एक बिंदास सहारनपुर के लड़के की भूमिका में उन्होंने अपने किरदार को बहुत नेचुरल तरीक़े से निभाया है हृषिता भट्ट का अभिनय औसत है लेकिन फिल्म में आशुतोश के लगोंटिया दोस्त जमशेद के क़िरदार में अभिनेता हरीश हरिऔध परदे पर अपने एक्ट और संवाद के जरिये हसाते रहे है। फिल्म में हिमानी शिवपुरी , राजू खेर , आर्यन वैद और लोकेश गुप्ता ने भी अपने क़िरदारों में अच्छे लगे है जाकिर हुसैन एक बहुत ही प्रतिभाशाली अभिनेता है बाबा मूलमंत्र के किरदार को जो नाटकीयता चाहिए थी उसके साथ उन्होंने न्याय किया है।




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